चौ. अजित सिंह ने नहीं होने दिया माल्या का कर्जा माफ

                 

                      


कमियां तो सब में होती हैं, किसी में कोई  तो किसी में कोई। लेकिन उन्हें बहुत कम लोग ही स्वीकार कर पाते हैं। राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह ऐसे ही गिने-चुने साफ सुथरी छवि वाले नेताओं में थे जो अपने  खिलाफ सुन सकते थे और अपने खिलाफ खुद बोल भी सकते थे। सार्वजनिक रूप से अपनी कमियां स्वीकार करने में उन्हें कोई हिचक नहीं थी।

वह बहुत ही हंसमुख, सादा सरल और बात-बात पर कह कहे लगाने वाले इंसान थे। अमर उजाला के तत्कालीन चेयरमेन और प्रधान संपादक अशोक अग्रवाल नितांत व्यक्तिगत चर्चाओं में जब उन्हें कहते-‘‘जाट रे जाट, तेरे ऊपर खाट। उन्हें बुरा नहीं लगता।  इसके आगे की कहावत को वह खुद पूरा करते----- तेरे ऊपर कोल्हू’’।  इसके बाद  वह जाटों के बारे में एक-दो कहावतें अपनी ओर से सुनाते- ‘‘अनपढ़ जाट पढ़ा जैसा, पढ़ा-लिखा जाट खुदा जैसा’’,  ‘‘जाट में बुद्धि तब आए, जब बारह बज जाएं’’।  फिर दोनों ठहाके मारकर हंसते। एकदम निश्चल हंसी।

एक बार का वाक्या है, आगरा के एक पांच सितारा होटल में वह पत्रकारों से बात कर रहे थे। अनेक राजनीतिक सवालों के बाद जब मैंने उनसे पूछा कि आपके पिता चौधरी चरण सिंह का देश में बहुत बड़ा जनाधार था और अब आपके समय में क्या स्थिति आ पहुंची है? उन्होंने सवाल पूरा होने से पहले ही तपाक से कहा-‘‘मैं उनका नालायक बेटा हूं’’ यह बात प्रेस के सामने थी। वह चाहते तो इसका  घुमा फिराकर भी जवाब दे सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वह अपनी बात में लाग लपेट नहीं रखते थे। यह अलग बात है कि उनकी यह बात उस समय किसी ने छापी नहीं थी। क्योंकि वह नालायक नहींं थे लेकिन उन्हें यह बात खलती थी कि वे अपने पिता की विरासत को नहीं संभाल पा रहे हैं।

चौधरी अजित सिंह ऐसे सुलझे हुए राजनेता थे जिन्होंने देश के लिए, किसानों के लिए और जाटों के लिए भी काफी कुछ किया लेकिन अपने ऊपर कभी जातिवादी आरोप नहीं लगने दिया, जैसा कि उनके पिता के ऊपर लगता रहा। वह जिंदगी भर किसानों के लिए संघर्ष करते रहे। अपने पिता की विरोधी पार्टी कांग्रेस से उन्होंने समझौता किया। और भाजपा से भी। फिर भी वह अपने सिद्धांतों से न कभी हटे और नहीं टूटे। कांग्रेस नीत मनमोहन सिंह की सरकार में जब वह केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री थे, तब उद्योगपति विजय  माल्या का कर्जा माफ किए जाने का प्रयास किया गया। वह अजित सिंह ही थे, जिन्होंने बिना एक मिनट की देर लगाए दो टूक कहा कि कर्जा माफ होगा तो किसानों का होगा, विजय माल्या का नहीं। उन्होंने माल्या का कर्जा माफ नहीं होने दिया। माल्या का उस वक्त कांग्रेस सरकार में अच्छा प्रभाव था। लेकिन अजित सिंह किसानों के लिए समर्पित थे। माल्या उन्हें प्रभाव में नहीं ले सके। उन्हें किसानों के हित के खिलाफ कोई प्रभाव में नहीं ले सकता था।

कांग्रेस की सरकार ने जाटों को केंद्र की नौकरियों में आरक्षण के लिए जो आदेश किए थे, उसका मुख्य कारण अजित सिंह ही थे। पर्दे के पीछे रहकर उन्होंने यह कार्य किया। यह अलग बात है कि  थोड़े दिनों बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश को खारिज कर दिया। वह समाज के निचले, शोषित और पिछड़े वर्ग के हितों के भी प्रबल हिमायती थे। इसके लिए उन्होंने किसानों, दलितों और अल्पसंख्यकों को  एक साथ एक मंच पर लाने के लिए भरसक प्रयास किया। वह किसानों को समझाते थे कि दलित उनके साथ खेतों में उनके सबसे बड़े सहयोगी हैं, उनके साथ सम्मान से पेश आएं। बसपा सुप्रीमो मायावती से भी  संबंध साधे लेकिन कामयाब नहीं हो सके। मुजफ्फरनगर के दंगे से वह इतने मर्माहत हुए कि दंगा समाप्त होने पर किसी पक्ष के पास नहीं गए, न पीड़ित जाटों के पास और नहीं पीड़ित  मुसलमानों के  पास। इसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने कीमत चुकाई पर अपने दामन पर जातिवादी,  पक्षपाती और सांप्रदायिकता का दाग नहीं लगने दिया।

वह वायदे के पक्के थे। उन्होंने शायद ही कोई ऐसा कोई वायदा जनता से किया हो जो सामथ्र्य रहते उन्होंने पूरा नहीं किया हो। उन्होंने आगरा में एक बार फतेहपुरसीकरी विधान सभा क्षेत्र के चुनाव के दौरान एक जन सभा में वायदा किया कि यदि वे चौ.बाबूलाल को जिता देंगे तो वह उन्हें सरकार में मंत्री बनवा देंगे। चौ. बाबूलाल चुनाव जीत गए। प्रदेश में सरकार भी बन गई। कई महीने बाद चौधरी अजित सिंह आगरा आए तो पत्रकार वार्ता में मैंने उन्हें उनके वायदे के बारे में याद दिलाया। वह झट मुस्कराए, बोले‘‘-तुम अपने मित्र की मदद करना चाहते हो’’। उसके कुछ दिन बाद ही चौधरी बाबूलाल प्रदेश सरकार में मंत्री बने।

वह उच्चकोटि के बुद्धिजीवी थे। प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा के शब्दों में देश के उद्योगपतियों में वह देश के काबिल थे। आईआईटी  खड़गपुर और इलेनौय इंस्टीट्यूट आ्रफ टेक्नोलोजी,  अमेरिका से पढ़-लिखकर वह साफ्टवेयर वैज्ञानिक के रूप में अमेरिका में स्थापित हो चुके थे। पिता चौधरी चरण सिंह शायद उन्हें राजनीति में नहीं लाना चाहते थे। पिता  की जब ज्यादा तबियत खराब हुई तो मां के कहने पर  संयोग से राजनीति में आए।  राजनीति में वह अपने पिता की तरह हमेशा जनसाधारण की तरह ही रहे। कभी उन्होंने विशिष्ट बनने की कोशिश नहीं की।  किसी के लिए भी उनके दरबाजे हमेशा खुले रहते । वास्तव में अमेरिका में 17  साल की नौकरी में साफ्टवेयर वैज्ञानिक उनके मन-मस्तिष्क पर हावी हो चुका था। विज्ञान में रत्ती भर भी झूठ नहीं चल सकता। इसलिए वह राजनीति में झूठ और फरेब का इस्तेमाल नहीं कर सके। छल-कपट उन्हें नहीं ही आता था इसीलिए वह एक बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। जोड़तोड़ में माहिर प्रतिद्वंद्वी मुलायम सिंह यादव बाजी मार ले गए। 

चौधरी अजित सिंह   छोटे राज्यों के हिमायती थे। उन्होंने हरित प्रदेश के लिए जबर्दस्त आंदोलन चलाया।   कामयाब नहीं हो सके  पर वह इसे कभी भूले भी नहीं। आगरा से उनका विशेष लगाव रहा। केंद्र में नागरिक उड्डयन मंत्री बनने के बाद सबसे पहले उन्होंने आगरा से वाराणसी, खजुराहो और दिल्ली की वायु सेवा शुरू कराई  जो महीनों पहले से बंद थी और निकट भविष्य में इसके चालू होने की कोई उम्मीद नहीं थी। आगरा के लोग यह बात कैसे भूल सकते हैं?



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