पीवी नरसिंह राव की याद में

                            
                                         
बात उन दिनों की है जबकि श्रीराम जन्म भूमि आंदोलन जोरों पर था। आंदोलन के अगुआ और संतों की समिति के तत्कालीन अध्यक्ष वामदेवजी  महाराज आगरा आए हुए थे। पत्रकार ऐसे लोगों को ढूंढ़ते रहते हैं। साथी पत्रकारों से साथ में भी पहुंच गया महाराज जी से बात करने और रामजन्मभूमि आंदोलन के बारे में कुछ नया उगलवाने। उन्होंने सभी का बारी-बारी से परिचय लिया फिर मुझ से शिकायत की कि आप लोग नृत्यगोपालदास जी को बहुत ज्यादा छापते हो। जबकि उनका स्तर उनसे कम है। यह वही महंत नृत्य गोपालदास हैं जिन्होंने उनके बाद संतों के आंदोलन की कमान संभाली। आजकल वह रामजन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष हैं।
वामदेव जी बहुत ही विद्वान और वृंदावन के प्रमुख संतों में से एक थे। मथुरा जिले में बरसाना के पास के एक गांव के रहने वाले नृत्यगोपालदास जी उनके शिष्य रहे हैं। उनकी शिकायत सही थी। नृत्य गोपालदास ज्यादा सक्रिय रहते,  मथुरा से खबरें आती, छप जाती।  उस समय ‘आज’ अखबार श्रीराम मंदिर की खबरों को प्रमुखता देता था।  मैंने वामदेवजी को समझाया कि महाराज आप तो संत हैं, श्रीराम मंदिर की ही तो बात हो रही है। आपको तो खुश होना चाहिए। मुझे ताज्जुब हुआ कि अखबारो में छपने को लेकर संतों में भी प्रतिस्पर्धा रहती है। मैंने उन्हेें बहुतेरा समझाया कि संतों को इन बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, आप ईश्वर भक्ति पर जोर दें। लेकिन जब वह किसी तरह मानने को तैयार नहीं हुए तो मैंने ही हार मान कर कह दिया आपकी बात का आगे ध्यान रखेंगे। इसके बाद विषय बदलते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के बारे में पूछ लिया कि उनके बारे में आपके क्या विचार हैं?
महाराज ने खुलकर राव साहब की तारीफ की। उन्होंने कहा-‘‘ पीवी नरसिंह राव जैसा प्रधानमंत्री  कोई नहीं हो सकता’’।  फिर उन्होंने विस्तार से बताया कि वह संतों के प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री राव से उनके आवास पर मिलने गए थे। प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व  वही कर रहे थे। उनके लिए प्रवेश द्वार तक कालीन बिछाई गई। राव साहब स्वागत करने के लिए खुद प्रवेश द्वार तक आए। पहले सबके पैर धोए। इसके बाद घर में उनसे संस्कृत में बातचीत की। उन्होंने उनकी सारी बातें मान लीं। वामदेव जी उनसे मिलने के बाद बहुत ही गद्गद थे।
राव साहब देश के दशवें प्रधानमंत्री  थे। देश की कई उपलब्धियां उनके नाम हैं। मेरा उनसे सीधा परिचय उस समय हुआ जबकि अगस्त 1995 में फिरोजाबाद में हुई भयंकर रेल दुर्घटना में घटनास्थल का दौरा करने के लिए वह आए।  दुर्घटना में करीब साढ़े तीन सौ लोग मरे थे। तत्कालीन भाजपा सांसद प्रभूदयाल कठेरिया इस घटना को लेकर संसद में रो पड़े थे। इस पर वह दूसरे दिन ही यहां आ गए। पीड़ितों से मिलने के बाद वापस लौटते समय आगरा में खेरिया स्थित टेक्नीकल एयरपोर्ट पर खड़े-खड़े उनसे बात हुई। पत्रकारों की टीम में उस वक्त मेरे साथ फोटोग्राफर केवल शर्मा, अमर उजाला से वरिष्ठ पत्रकार  सुभाष रावत और कई अन्य थे। मैंने पूछा- ‘‘इस तरह की दुर्घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो, इसके लिए आप क्या करेंगे’’? उन्होंने पहले तो सवाल की तारीफ की फिर विस्तार से कहा कि दुर्घटनाएं मानवीय और तकनीकी दोनों ही प्रकार की त्रुटि से होती हैं, हम दोनों ही स्तर पर सिस्टम में सुधार करेंगे। बाद में ऐसा उन्होंने किया भी। उन्होंने पुराने सिग्नल सिस्टम को बदलवा दिया। और भी कई बदलाव किए। तब से आज तक वैसी दुर्घटना की पुनरावृत्ति नहीं हुई। वह ऐसे नेता थे जो कहते थे, उसे करते थे।
राव साहब से अगला सवाल तत्कालीन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अर्जुन सिंह को लेकर था। वह उस समय कांग्रेस में विद्रोह का झंडा उठाए हुए थे। उन्होंने एनडी तिवारी लेकर अलग कांग्रेस बना ली थी। जवाब में राव साहब से दोनों हाथ जोड़ लिए और बिना कुछ कहे ही आगे को बढ़ गए। साथ में चल रहे तत्कालीन सांसद भगवान शंकर रावत जी ने कहा-‘‘सिंह साहब, इससे अच्छा जवाब नहीं हो सकता’’। ठीक ही था,  उनके कुछ भी कहने से विरोध  को तूल मिलता। बाद में वह मामला शांत हो गया। अर्जुन सिंह और एनडी  तिवारी फिर से कांग्रेस में आ गए। 
राव साहब बहुत ही सुलझे हुए थे, दूरदृष्टा थे। तमाम विरोधों के बीच निश्चिंत होकर काम करना उन्हें आता था। कहीं पढ़ा था कि जब वह छोटे थे, पढ़ने के लिए अपने गांव से कई किलोमीटर जाते थे। कुछ दूरी तक बड़े भाई बैलगाड़ी से छोड़ते थे। इसके बाद वह नदी पार कर पैदल जाते थे।

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