भारत में ऐसे आए मुसलमान


                     

पाकिस्तान के सिंध प्रांत और उसके आसपास  बहुत बड़े क्षेत्र में कभी जाटों का राज था। जाटों के रायवंश का राज।  उनकी तलवारों की धार और नुकीले तीरों की मार विदेशी आक्रांताओं पर बहुत भारी पड़ती थी। उन्हें झेलने की किसी में क्षमता नहीं थी। लेकिन अपने ही लोगों के छलकपट की राजनीति ने इसे कहीं का नहीं छोड़ा, वरना पाकिस्तान तो  क्या आज अफगानिस्तान भी अपने ही पास रहता। कोई तालिबान सिर नहीं उठा पाता। इतिहास के इन पन्नों पर जमा  भारी गर्द हटाने की अब किसी को फुर्सत नहीं है। कुछ लोग मुगलों के शासन को ही मुसलिम राज कहकर लोगों को उलझाते रहते हैं। वास्तव में मुसलिम आक्रांता यहां इससे बहुत पहले से आ गए थे।

बात है, सातवी सदी की जबकि बगदाद के खलीफाओं ने यहां बार-बार हमले किए। खलीफा पर खलीफा बदलते गए लेकिन हमले बंद नहीं हुए।   एक बार  ईरान के बादशाह नीमरोज ने  सिंध के राजा राय महरसन द्वितीय पर हमला किया। उन्होंने बहुत ही बहादुरी से युद्ध लड़ा।  गले में तीर लगने से वह वीरगति को प्राप्त हुए फिर भी नीमरोज को क्षेत्र पर कब्जा नहीं करने दिया। सेना ने ईरानियों को मार भगाया।  इसके बाद राय साहसी द्वितीय राजगद्दी पर बैठे। 

इतिहास में कहीं-कहीं इन्हें सहीरस भी कहा गया है।  राय साहसी द्वितीय  के कोई पुत्र नहीं था। उनके राज्य की सीमा  पूर्व में कश्मीर से कन्नौज तक,  पश्चिम में मकरान तथा समुद्र के देवल बंदरगाह तक, दक्षिण में सूरत  तक तो उत्तर में कंधार, सीस्तान, सुलेमान, फरदान और केकानान तक के पहाड़ों तक थी। वह बौद्ध धर्म के अनुयाई थे। अलोर उनकी राजधानी थी। वह जनता के प्रति दयालू और बहुत ही लोकप्रिय थे। उनके नाम पर ही राजस्थान में साहसी जाटों का एक गोत्र  है। चच नाम के एक कश्मीरी पंडित ने विश्वासघात करके इनके राज्य पर कब्जा कर लिया।  कब्जा कैसे किया इसके बारे में सर हेनरी एम इलियट की पुस्तक  ‘डिस्ट्रीव्यूशन आफ दी नार्थ वेस्टर्र्न प्रोवेंसिस आफ इं्डिया’ और ठाकुर देशराज की पुस्तक ‘जाट इतिहास’ में लिखा  है कि एक बार राजा राय साहसी द्वितीय बीमार हुए तो उन्होंने वजीर से कहा कि वह देश- विदेश से आने वाली चिट्ठियों को सुनाने के लिए किसी को उनके पास भेज दें। वजीर ने अपने चच नाम के एक कश्मीरी पंडित मुंशी को उनके पास भेज दिया। चच बहुत ही चतुर था। उसकी बातों से राजा प्रभावित हुआ? राजा ने उसे भी अधिकारी बना दिया। कुछ ही दिनों में चच ने राजा का इतना विश्वास हासिल कर लिया कि उसका जनानखाने तक आना-जाना हो गया। राजा की रानी सुहांदी  को उसने पटा लिया। फिर दोनों ने साजिश करके राजा को ठिकाने लगा दिया। बाद में चच सुहांदी से शादी करके राजा बन बैठा।  यह वाक्या सन् 660 ईसवी का है।

‘चचनामा’ के अनुसार राय साहसी द्वितीय की कोई संतान नहीं होने के कारण उसने चच को उत्तराधिकारी बनाया। लेकिन देशराज सिंह की पुस्तक  ‘जाट इतिहास’ ने इस बात से साफ इंकार किया  है।  उन्होंने लिखा है विश्वासघात किया गया था इसीलिए   राजा राय साहसी के दामाद चित्तोड़ के राजा महारथ राणा ने चच पर चढ़ाई कर दी।  चच ने  धोखे से उसका भी वध कर दिया। बताते हैं कि महारथ राणा ने प्रस्ताव रखा कि सैनिकों की मारकाट की बजाय आपस में मल्लयुद्ध करके फैसला कर लेते हैं। महारथ को अपनी ताकत पर भरोसा था। मल्लयुद्ध के लिए तय किया गया कि किसी के हाथ में शस्त्र नहीं होगा। घोड़ों का भी इस्तेमाल नहीं होगा। राजा महारथ मल्लयुद्ध के लिए मैदान में खाली हाथ आया तो चच ने विश्वासघात किया। उसने घोड़े, हथियार और सैनिकों का इस्तेमाल कर राणा का वध कर दिया। 

इतिहासकारों के अनुसार चच राजा तो बन गया। उसने करीब 40 साल शासन भी किया। उसके बाद उसके भाई चंदर और उसके बेटे दाहिर ने भी शासन किया। लेकिन कश्मीरी पंडित राजा राज्य को संभाल नहीं पाए। विदेशी आक्रांताओं ने इन्हें मारकर सिंध और आसपास के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। इस तरह राज्य न रायवंश के  पास रहा और न कश्मीरी पंडितों पर। कश्मीरी पंडित राजाओं ने क्या-क्या गलतियां की जिसका खामियाजा देश को भुगतना पड़ा। इसकी जानकारी के लिए अगला आलेख-‘कश्मीरी राजाओं की गलती, देश ने भुगती’ अवश्य पढ़ें। 



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